आम जानकारी
यह भारत में आम उगाई जाने वाली, पर व्यापारिक फसल है। इसका जन्म केंद्रीय अमेरिका में हुआ है। इसे उष्णकटिबंधीय और उप- उष्णकटिबंधीय इलाकों में उगाया जाता है। इसमें विटामिन सी और पैक्टिन के साथ साथ कैल्शियम और फासफोरस भी अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह भारत की आम, केला और निंबू जाति के बूटों के बाद उगाई जाने वाली चौथे नंबर की फसल है। इसकी पैदावार पूरे भारत में की जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और तामिलनाडू के इलावा इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जाती है। पंजाब में 8022 हैक्टेयर के रकबे पर अमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मैट्रिक टन होती है।
मिट्टी-यह सख्त किस्म की फसल है और इसकी पैदावार के लिए हर तरह की मिट्टी अनुकूल होती है, जिसमें हल्की से लेकर भारी और कम निकास वाली मिट्टी भी शामिल है। इसकी पैदावार 5.5 से 7.5 पी एच वाली मिट्टी में भी की जा सकती है। अच्छी पैदावार के लिए इसे गहरे तल, अच्छे निकास वाली रेतली मिट्टी से लेकर चिकनी मिट्टी में बीजना चाहिए|
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार-
Sardar: इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। यह छोटे कद वाली किस्म है, जिसकी टहनियां काफी घनी और फैली हुई होती हैं। इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। खाने को यह नर्म, रसीला और स्वादिष्ट होता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत होती है। इसकी प्रति बूटा पैदावार 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।
VNR BIHI-यह अमरूद की हाइब्रिड किस्में इसके अंदर उत्पादन 1 साल में ही शुरू हो जाता है और एक फल का औसत वजन 800 ग्राम से डेढ़ kg तक होता है
जमीन की तैयारी- खेत की दो बार जोताई करें और फिर समतल करें। खेत को इस तरह तैयार करे कि उसमें पानी ना खड़ा रहे। इससे खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है
बिजाई का समय
फरवरी-मार्च या जुलाई-सितंबर का महीना अमरूद के पौधे लगाने के लिए सही माना जाता है।
फासला -एक पौधे से दूसरे पौधे तथा एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति के बीच की दूरी 10 *10 फीट होनी चाहिए
खाद –
कटाई और छंटाई – पौधों की मजबूती और सही वृद्धि के लिए कटाई और छंटाई की जरूरत होती है। जितना मजबूत बूटे का तना होगा, उतनी ही पैदावार अधिक अच्छी गुणवत्ता भरपूर होगी। बूटे की उपजाई क्षमता बनाए रखने के लिए फलों की पहली तुड़ाई के बाद बूटे की हल्की छंटाई करनी जरूरी है। जब कि सूख चुकी और बीमारी आदि से प्रभावित टहनियों की कटाई लगातार करनी चाहिए। बूटे की कटाई हमेशा नीचे से ऊपर की तरफ करनी चाहिए। अमरूद के बूटे को फूल, टहनियां और तने की स्थिति के अनुसार पड़ते हैं इसलिए साल में एक बार पौधे की हल्की छंटाई करने के समय टहनियों के ऊपर वाले हिस्से को 10 सैं.मी. तक काट देना चाहिए। इस तरह कटाई के बाद नईं टहनियां अकुंरन में सहायता मिलती है।
अंतर-फसलें-
अमरूद के बाग में पहले 3 से 4 वर्ष के दौरान मूली, भिंडी, बैंगन और गाजर की फसल उगाई जा सकती है। इसके इलावा फलीदार फसलें जैसे चने, फलियां आदि भी उगाई जा सकती हैं।
खरपतवार नियंत्रण – पौधे के अच्छे विकास के लिए समय-समय पर पौधे से खरपतवार को हटाते रहे
सिंचाई – पौधे में सिंचाई बहुत ही आवश्यक होती है नया पौधा जमीन में लगाने के पश्चात 2 से 3 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए तथा जब पौधा 5 से 6 महीने का हो जाता है तो 7 से 8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए बड़ा पौधा होने पर 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए| जब पौधे में फ्लोरिंग स्टेज रहती है तब पानी बिल्कुल ही बंद कर देना चाहिए
हानिकारक कीट और रोकथाम
फल की मक्खी : यह अमरूद का गंभीर कीट है। मादा मक्खी नए फलों के अंदर अंडे देती है। उसके बाद नए कीट फल के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।
यदि बाग में फल की मक्खी का हमला पहले भी होता है तो बारिश के मौसम में फसल को ना बोयें। समय पर तुड़ाई करें। तुड़ाई में देरी ना करें। प्रभावित शाखाओं और फलों को खेत में से बाहर निकालें और नष्ट कर दें। फैनवेलरेट 80 मि.ली को 150 लीटर पानी में मिलाकर फल पकने पर सप्ताह के अंतराल पर स्प्रे करें। फैनवेलरेट की स्प्रे के बाद तीसरे दिन फल की तुड़ाई करें।
मिली बग : ये पौधे के विभिन्न भागों में से रस चूसते हैं जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यदि रस चूसने वाले कीटों का हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 50 ई सी 300 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।



